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इंद्रावती की यात्रा / शरद चन्द्र गौड़

कल कल करता मेरा पानी
वींणा की मधुर झंकार सुनाता

महादेव घाट के मंदिर मुझको
आस्था की घण्टियाँ सुनवाते

मेरे मीठे पानी से पशु-पक्षी-मनु
अपनी प्यास बुझाते

दूर देश के लोग मेरे
जल-प्रपात के दर्शन पाते
इंद्रधनुषी चित्रकोट की
सुन्दरता में खो-खो जाते

मैने देखे क़दम-क़दम पर
नई-नई भाषा बोलने वाले
गोरे काले साँवले
नाटे ऊँचे तरह-तरह के लोग

मैने देखी डगर-डगर पर
नित नई जाति अलग-अलग
और देखे अलग-अलग
मज़हब को मानने वाले

मैने जीती मेराथन
कालाहाण्डी से भद्रकाली
मैने पिया छोटी-बड़ी नदी
नालों का पानी

मेरे हाथों पर
खड़े हुए है, छोटे-बड़े पुल-पुलिए
मेरी रेती से खेलकर छोटे बच्चे
बड़े हुए

मैनें कभी किया नहीं मना
अपना पानी पीने से
मैने किसी को टोका नहीं
कपड़ा धोने और नहाने से
मेरे मीठे पानी ने
कभी किसी से कुछ नहीं माँगा
फिर भी मुझे चुराने
क्यों हृदय मनु का नहीं सकुचाया

मेरा पानी गिरकर बिजली बन जाता
रोशन करता झोंपड़-पट्टी
और खुशियाली लाता
ना जाने कितने जीव-जन्तु
मुझमें जीवन बसर करते
मुझको जीवन देते और लोगों का
उदर भरते

मैं मरणासन्न मेरी साँसे
धीरे-धीरे चलती हैं
स्टेथस्कोप गले में टाँगे
डॉक्टर के लिए आँखें तरसती हैं

ऐसा लगता मानों
अस्पताल में पड़ी मरीज़ हूँ
मुझे देखने आए पर्यटक
मानों विजिटर बनकर आए है
मेरी पतली धारा देख,
सिर पीट खिसियाए हैं
यादें ताज़ा करते वे
मेरे कल-कल पानी की
चौड़ाई में बहती थी में
इंद्रधनुषी छटा लिए
अब तो ताकती एकटक
उड़ते बादल आसमाँ में
कब बरसेंगे-कब बरसेंगे

और ताकती उन ’गेटों’ को
जिनने मुझको बन्द किया
और ताकती उस नाले को
जिसने मुझको चुरा लिया
मेरी यात्रा जारी है
चाहे जितनी बाधा आए
चाहे जितनी बाधा आए