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इएं केॾो न हू सुहिणो लॻो थे! / अर्जुन हासिद

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इएं केॾो न हू सुहिणो लॻो थे!
चवां कर किअं त कंहिं जहिड़ो लॻो थे!

चयाऊं थे, वॾियूं-ॻाल्हियूं कंदो आ,
मगर मूंखे त वेचारो लॻो थे!

मञां थो ज़हर ओॻारे थो अक्सर,
ॾिसण में साफ़ आईनो लॻो थे!

अलाए कंहिं खां इअं मुरिकणु सिखियो आ,
अखियूं अहिड़ियूं, जो बस पंहिंजो लॻो थे!

मिलण जो वक्तु ॼणु मुक़रर थियलु हो,
न आयो थे त को उल्को लॻो थे!

पुछो था ज़ाइको हुन जे रुसण जो,
कॾंहि कौड़ो, कॾहिं चहरो लॻो थे!

दिलियुनि में कशमकश एॾी त हासिद,
खुलियलु पुणि बंद दरवाज़ो लॻो थे!