Last modified on 1 अप्रैल 2011, at 23:30

इकला चांद / केदारनाथ अग्रवाल

Pratishtha (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 23:30, 1 अप्रैल 2011 का अवतरण

इकला चांद

असंख्य तारे,

नील गगन के

खुले किवाड़े;

कोई हमको

कहीं पुकारे

हम आएंगे

बाँह पसारे !