Last modified on 28 जून 2017, at 18:39

इको-फ़ेण्डली हस्त निर्मित / रंजना जायसवाल

कपड़ों की बेकार कतरनों से बना है
बिलकुल प्रदूषण-मुक्त
और सस्ता भी है यह कागज साहब
बहुत मेहनत से बनाती हैं
हमारी गरीब माएं इसे
यह हमारी दाल-रोटी है
लुग्गा-कपड़ा है मैडम
इस पर लिखेगा आपका बच्चा
पढ़-लिखकर बड़ा आदमी बनेगा
हम तो पढ़-लिख नहीं पाए मैडम
मुँह अँधेरे ही निकलना पड़ता है बोरा लेकर
बदबूदार कचरे के ढेर से चुनने
कपड़ों की चिन्दियाँ
गिड़गिड़ाना पड़ता है कंजूस दर्जियों के आगे
सहना पड़ता है कईयों के अश्लील ईशारे
इन्हीं सब में निकल जाता है पूरा दिन
घर पर झाडूं-पोंछा,बर्तन-भांडी
पकाना-खिलाना भी तो करना पड़ता है साहब
कब जाएँ स्कूल कैसे बनें 'भारत की बेटी'
पढ़ाई जरूरी है समझती हैं हम भी
पर रोटी से ज्यादा जरूरी नहीं है साहब।