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इक भिखारी से भिखारी आके क्या ले जायेगा / नज़ीर बनारसी
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इक भिखारी से भिखारी आके क्या ले जायेगा
वह भी तोहमसे खुदा ही का दिया ले जायेगा
यात्री लाखों मगर मंजिल पे पहुँचेगा वही
साथ अपने जो फकीरों की दुआ ले जायेगा
है जो माखनचोर, वह नटखट है, हृदयचोर भी
इक नजर में लूट कर पूरी सभा ले जायेगा
अपने दर पर तूने दी है जिसको सोने की जगह
वह तिरी आँखों की नींदें तक उड़ा ले जायेगा
हद से आगे बढ़ के मत दो दान हो या दक्षिणा
वरना तुमको वक्त का रावण उठा ले जायेगा
इक बहेलिया तक का है चहचहाते पेड़ को
पंछियो, बचना यह कितनों को उड़ा ले जायेगा
बाढ़ से दरिया किनारे रात मत सोना ’नजीर’
वरना सोते में तुम्हें तूफाँ उठा ले जायेगा
शब्दार्थ
<references/>