Last modified on 28 अप्रैल 2011, at 20:59

इक शख्स था / मख़दूम मोहिउद्दीन

अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 20:59, 28 अप्रैल 2011 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

इक शख़्स था ज़माना था के दीवाना बना
इक अफ़साना था अफ़साने से अफ़साना बना

इक परी चेहरा के जिस चेहरे से आइना बना
दिल के आइना दर आइना परीख़ाना बना

कीमि-ए-शब् में निकल आता है गाहे गाहे
एक आहू कभी अपना कभी बेगाना बना

है चरागाँ ही चरागाँ सरे अरिज सरेजाम
रंग सद जलवा जाना न सनमख़ाना बना

एक झोंका तेरे पहलू का महकती हुई याद
एक लम्हा तेरी दिलदारी का क्या-क्या न बना