भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

इच्छाएँ / संजय कुंदन

Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 11:06, 13 जुलाई 2013 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=संजय कुंदन }} {{KKCatKavita}} <poem> इच्छाएँ पीछ...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

इच्छाएँ पीछा नहीं छोड़तीं
वह नजर आ ही जाती हैं खूँटी पर कमीजों के बीच टँगी हुईं
या ताखे पर दवाओं के बीच पसरी हुईं

उन्हें बार-बार बुहार कर बाहर कर देता हूँ धूल के साथ
थमा देता हूँ कबाड़ी को रद्दी कागज के साथ
लेकिन एक दिन अचानक वे प्रकट होती हैं चौखट के बीच से
लाल चीटियों के कोरस में
मेरी नींद में दखल देती हैं झींगुरों के सुर में सुर मिला कर

वे यह भूलने को तैयार नहीं कि
कभी मैंने उनके साथ जीने-मरने का वादा किया था।