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इच्छा / डॉ. देशभक्त

बाबू जी!
तों जे पौध केॅ
लगैने छेलौ अपनॅ आंगन में
डालने छेल्हौ खाद
अपनॅ पेट काटी केॅ
आरो सिंचने छेल्हौ जेकरा
अपनॅ लहू-पसीना सें
आबेॅ ऊ पौधा
पौधा न´
पेड़ होय गेलॅ छै
ओकर कमजोर डाल
आबेॅ फौलादॅ सें टकराबै के
काबिल होय गेल छै
ऊॅ छोटॅ पौधा
जेकर ऊँचाई बहुत कम छेलै
आबेॅ
आसमान केॅ छूवै के लायक होय गेलॅ छै
तखनी तेॅ
ऊ ठूंठ छेलै
आबेॅ
घना बादल जकाँ होय गेलॅ छै
बहुत फूल लगलॅ छै ओकरा में
आबेॅ कुछ दिन सें
मीट्ठॅ फलो लागेॅ लागले
मतुर
पछताबै छै ऊ बृक्ष
रोवै छै याद करि केॅ तोरॅ
कोसै अपन भाग केॅ
कहिंने कि
देॅ न´् सकलकै कुछ तोरा
काश! अखनी तक तों जीवित रहतियॅ
अखनी अपनॅ लगैलॅ पौधा केॅ
फूलते फलते देखेॅ सकतिहॅ