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इज्ज़त बचाए रखता है असरार की तरह / सादिक़ रिज़वी

इज्ज़त बचाए रखता है असरार की तरह
फैलाता हाथ जो नहीं नादार की तरह

सब रिश्ते नाते ताक़ पर रखकर वो बज़्म में
अपनों से पेश आते हैं अगयार की तरह

कब टूट जाए ये तो नज़ाकत से है भरी
होती है सांस की कड़ी इक तार की तरह

दौरे खिज़ां में ज़ेरे-शजर सजर पत्ते ज़र्द रू
बिखरे पड़े है चारसू बीमार की तरह

अहले खिरद को आता है पढ़ना किताबे रुख
करना न ज़िंदगी बुरे किरदार की तरह

जिनकी पहुँच से दूर हक़ीक़त के ख्वाब हैं
जीवन में रंग भरते हैं फनकार की तरह

क्यों कर न चूम लेने को 'सादिक़' का दिल करे
गुलशन के गुल का रंग है रुखसार की तरह