भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

इड़ियन छिड़ियन उतरीं मोरी लाड़ली / बुन्देली

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

इड़ियन छिड़ियन उतरीं मोरी लाड़ली हार दये सरकाय हो रम्मा।
घरियक हार सकेलो मोरी बेटी आई है धरम की बेर हो रम्मा।
चन्द्रग्रहण नित होय राजा बाबुल सो सूरज ग्रहण नहिं होय हो रम्मा।
गौऊन दान नित होंय राजा बाबुल धियरि दान नहिं होंय हो रम्मा।
कन्या दान मड़वे के नीचे सो जो कोऊ विधि से लैवे हो रम्मा।
काहे कों बाबुल मोरे गंगा को जैहो सो काहे कों तीरथ पिराग हो रम्मा।
मड़वा के नीचे बाबुल गंगा बहतीं सो उतई करौ अस्नान हो रम्मा।
बाबुल के हाथन कुश की डारी मैया के हाथन सोने की झारी हो रम्मा।
सो गंगा जल धार बहाओ मोरे बाबुल जनम के पाप कटाऔ हो रम्मा।
धरमहि धरमहि पुकारे मोरी लड़नदे धन बिन धरम न होय हो रम्मा।
तिल बिन तर्पण न होय मोरी लाड़ली सो घिया बिन होम न होय हो रम्मा।
जनम कौ इड़रो बिड़रो काड़ौ राजा बाबोला सो विलसो मड़वन माझ हो रम्मा।
मुठियक मुतिया सकेलो मोरे बाबोला सो लेऔ कन्या के दान हो रम्मा।