Last modified on 5 अगस्त 2009, at 07:22

इतना वह मजबूर कहाँ है / प्रेम भारद्वाज

प्रकाश बादल (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 07:22, 5 अगस्त 2009 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

उतना वह मजबूर कहाँ है
इतना बड़ा फितूर कहाँ है

जिनता है टूटन का ख़तरा
उतना चकनाचूर कहाँ है

साथ निभाएं गर ये घुटने
फिर मंज़िल भी दूर कहाँ है

ओ दीवारों के रंगसाज़ी
नींव का वह मज़दूर कहाँ है

चोर लगे तफ्तीसें करने
मिलना कोई कसूर कहाँ है

जितना तुम कहते हो उसको
उतना वह मग़रूर कहाँ है

जो सच झूठ पे चलने वाले
तेरा वह दस्तूर कहाँ है

प्रेम भरे उन गीतों वाला
चहरों पर भी नूर कहाँ