भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

इतनी-सी कथा / कुमार अंबुज

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

वह स्त्री स्टेशन के बाहर खड़ी थी आधी रात

घर लौटने के इंतज़ार में

अचानक हवा चली विषैली

लिखा जाने लगा त्रासदी का एक और अध्याय


प्रश्न यह नहीं था कि वह वापस कैसे लौटेगी,

सही-सलामत लौटेगी इतिहास को पारकर ?

खुल जाएगा किवाड़ ?

बेचैन दस्तकों और दरवाज़ा खुलने के युग के बीच

किन सवालों से जूझेगी ?

जो जली-सी गंध आएगी

सोचेगी क्षमा और प्रेम और करुणा के बारे में

गुस्से में तोहमतें लगाएगी ?


जो कुछ हुआ

वह उसका साक्ष्य है या विषय

पता नहीं धर्मसंसद के निष्कर्ष


कुल जमा इतनी-सी थी यह कथा

पीढ़ियों के सामने

पहला-ईसापूर्व छठी शती का एक भिखु

दूसरा-प्रचारक नवजागरण काल का

तीसरा-सफाई अभियान से बच निकला किशोर

तीनों के सामने विचित्र अंतर्विरोध

ज्ञान की निरीह उजास से बाहर जाकर

चुनौती बनने और खड़े होने का