Last modified on 30 मई 2008, at 07:10

इतनी जल्दी भूल गया ? / नागार्जुन

Pratishtha (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 07:10, 30 मई 2008 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

कैसे यह सब तू इतनी जल्दी भूल गया ?
ज़ालिम, क्यो मुझसे पहले तू ही झूल गया ?
आ, देख तो जा, तेरा यह अग्रज रोता है !
यम के फंदों में इतना क्या सचमुच आकर्षण होता है
कैसे यह सब तू इतनी जल्दी भूल गया ?
ज़ालिम, क्यों मुझसे पहले तू ही झूल गया ?

ये खेत और खलिहान और वो अमराई
सारी कुदरत ही मानो गीली हो आई
तू छोड़ गया है इन्हें, उदासी में डूबे
धरती के कण-कण घुटे-घुटे डूबे-डूबे
आ, देख तो जा, ये सिर्फ उसासें भरते हैं
अड़हुल के पौधे हिलने तक से डरते हैं।
ये खेत और खलिहान और वो अमराई
सारी कुदरत ही मानो निष्प्रभ हो आई
ज़ालिम, क्यों मुझसे पहले तू ही झूल गया ?
कैसे यह सब तू इतनी जल्दी भूल गया ?