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इतिहास पढ़ के देखो (ख्याल) / अछूतानन्दजी 'हरिहर'

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हरेक नेशन उठी है यों ही ज़रा तो इतिहास, पढ़ के देखो।
न मानो गर तो ये आर्य जाती का वेद ही खास, पढ़ के देखो।
इस हिन्द में जब ये आई चलकर, तो डाकू वहशी से कम नहीं थी।
तमीज़ ही थी, न मालो दौलत थी उसके पास, पढ़ के देखो॥
मगर है होनी ने ज़ोर मारा, भटकती आ हिन्द में आ पहुँची।
तो हिन्द सोने की सरज़मीं में, किया था जब बास, पढ़ के देखो॥
मगर थे हम हिन्द में तो अफजल, किले हमारे थे सौ-सौ यहाँ पर।
लड़े भी हम, पर हमारा छल से, गया था हो नास, पढ़ के देखो॥
हमारे पुरखे थे सीधे-सच्चे, न जानते थे कपट व छल को।
इसीसे दक्षिण से हट गये वे, ये शोक-उच्छ्वास, पढ़ के देखो॥
बचे जो जकड़े गये वही फिर गुलामी करने को आर्यों की।
वही है 'हरिहर' हमारे नेशन बनी जोयों दास, पढ़ के देखो॥