भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

इत है नीर नहावन जोग / दादू दयाल

Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 22:03, 21 मई 2014 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=दादू दयाल |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatBhajan...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

इत है नीर नहावन जोग॥
अनतहि भरम भूला रे लोग॥टेक॥

तिहि तटि न्हाये निर्मल होइ॥
बस्तु अगोचर लखै रे सोइ॥१॥

सुघट घाट अरु तिरिबौ तीर॥
बैठे तहाँ जगत-गुर पीर॥२॥

दादू न जाणै तिनका भेव॥
आप लखावै अंतर देव॥३॥