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इधर हैं रीते पियाले इधर भी एक नज़र / कांतिमोहन 'सोज़'

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इधर हैं रीते पियाले इधर भी एक नज़र I
पड़े हैं जान के लाले इधर भी एक नज़र II

सुना है शेवा तेरा नश्तर-आज़माई है,
हरे हैं दिल के ये छाले इधर भी एक नज़र I

निगाहे-बद के तिलिस्मों को तोड़ना है तुझे,
हमारे दिल की दुआ ले इधर भी एक नज़र I

हरेक रग पे यहाँ ज़ख़्म का शिगूफ़ा है,
बहार चाहनेवाले इधर भी एक नज़र I

सुना है लोहे को छूकर बनाए है सोना,
ख़ुदारा काश वो डाले इधर भी एक नज़र I

उधर हैं अहले-हवस अहले-जौर सफ़बस्ता,
इधर खड़े हैं जियाले इधर भी एक नज़र I

हज़ार सोज़ बुरे हैं हक़ीर-ओ-नाक़िस हैं,
हैं तेरे चाहनेवाले इधर भी एक नज़र II

06.02.1990