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ये घुँघरू बजाती अप्सराओं-सी नदियाँ
अभिसार को आतुर ये सलोनी बदलियाँ
 
बर्फीले बिछौनों पर ये अनुपम आलिंगन
सुरीली हवाओं के उन्नत पर्वतों को चुम्बन
 
ये घाटी, ये चोटी, ये उन्नत हिमाला
कन्या-सी सजी शांति लिये पुष्पमाला
 
कभी गुनगुनाती, कभी गुदगुदाती
धूप प्रेयसी-सी उँगलियाँ फिराती
 
मंगल गाते वृक्ष-लताएँ लिपटे समवेत
स्वर्ग को जाती सुन्दर सीढ़ियों-से खेत
 
पक्षी-युगल की ये प्रणय रत कतारें
मृग-कस्तूरी-सी सुगन्धित अनुपम बयारें
 
अपनी ही प्रतिध्वनि कुछ ऐसे लौट आए
जैसे प्रेयसी को उसका प्रियतम बुलाए
 
इस प्रतिध्वनि में डूब ऐसे खो जाऊँ
पद-धन-मान छोड़ '''बस इनमें खो जाऊँ''' !!
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