Last modified on 30 अप्रैल 2014, at 12:31

इन्तजार / शैलजा पाठक

एक शब्द इन्तजार

एक लम्बा सूखा रास्ता
एक गहरे गढ्डे में सूखी पड़ी नदी

यादों की परते खुरचती
नमी तक पहुंचती आवाज

मंदिर में बेजान जलता दिया
कांपती जिंदगी की लौ

तकिये में मौन पड़ी हिचकी
दस्तक पर हहराता कलेजा

यकीं पर बरसो से एक ठंडी
पड़ी आग

इन्तजार एक शब्द नही
एक रुदन है

सूखे चेहरे पर खारे आँसूओं
का थका सा समन्दर...