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इन मस्त निगाहों ने / मोहम्मद मूसा खान अशान्त

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इन मस्त निगाहों ने मय ऐसी पिला दी है
जीने की मिरी ख़्वाहिश कुछ और बढ़ा दी है

तन्हाई का ये आलम देखा ही नही जाता
इस वास्ते घबरा के एक शम्मा जला दी है

छाई है खिजाँ हर सू लेकिन तेरी यादों ने
मुरझाई कली दिल की ऐ यार खिला दी है

यादें तेरी वाबस्ता जिनसे थी कभी मूसा
बहते हुए पानी मे हर चीज़ बहा दी है