Last modified on 29 मई 2010, at 09:41

इन सपनों के पंख न काटो / महादेवी वर्मा

Aditi kailash (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 09:41, 29 मई 2010 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

इन सपनों के पंख न काटो
इन सपनों की गति मत बाँधो!

सौरभ उड़ जाता है नभ में
फिर वह लौट कहाँ आता है?
बीज धूलि में गिर जाता जो
वह नभ में कब उड़ पाता है?
अग्नि सदा धरती पर जलती
धूम गगन में मँडराता है।
सपनों में दोनों ही गति है
उडकर आँखों में ही आता है।
इसका आरोहण मत रोको
इसका अवरोहण मत बाँधो!

मुक्त गगन में विचरण कर यह
तारों में फिर मिल जायेगा,
मेघों से रंग औ’ किरणों से
दीप्ति लिए भू पर आयेगा।
स्वर्ग बनाने का फिर कोई शिल्प
भूमि को सिखलायेगा।
नभ तक जाने से मत रोको
धरती से इसको मत बाँधो!

इन सपनों के पंख न काटो
इन सपनों की गति मत बाँधो!