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इन हसीन वादियों से दो-चार नज़ारे चुरा लूँ तो चलें / संतोषानन्द

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इन हसीन वादियों से दो-चार नज़ारे चुरा लें तो चलें
इतना बड़ा गगन है, दो-चार सितारे चुरा लें तो चलें

कहीं कोई झरना ग़ज़ल गा रहा है
कहीं कोई बुलबुल तराना सुनाए
यहाँ हाल यह है कि साँसों की लय पर
ख़यालों में खोया बदन गुनगुनाए
इन नाजीज़ झुरमुटों से दो चार शरारे चुरा लें तो चलें...

हमारी कहानी शुरू हो गई है
समझ लो जवानी शुरू हो गई है
कई मोड़ हमने तय कर लिए हैं
नई ज़िन्दगानी शुरू हो गई है
इन मदभरे मंज़रों से दो-चार सहारे चुरा लें तो चलें...


फ़िल्म : प्यासा सावन (1981)