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इबादतख़ाने ढाए जा रहे हैं / बी. आर. विप्लवी

इबादतख़ाने ढाए जा रहे हैं
सिनेमाघर बनाए जा रहे हैं

फिरें आजाद क़ातिल और पहरे,
शरीफ़ों पर बिठाए जा रहे हैं

क़लम करना था जिनका सर ज़रूरी
उन्हीं को सर झुकाए जा रहे हैं

सुयोधन मुन्सिफ़ी के भेष में हैं
युधिष्ठर आज़माए जा रहे हैं

लड़े थे 'विप्लवी' जिनके लिए हम
उन्हीं से मात खाए जा रहे हैं