Last modified on 18 नवम्बर 2014, at 00:33

इमरजेंसी का गीत / कांतिमोहन 'सोज़'

अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 00:33, 18 नवम्बर 2014 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

इस नागवार सन्नाटे में आ कोई धुन गाएँ
ख़ामोश लबों की लाचारी गीतों में बुन जाएँ
आ कोई धुन गाएँ ।।

इस बार रंग दीवारों का काला और गहरा है
सपनों के पैरों में बेड़ी साँसों पर पहरा है
संशय का भूत भगाने को
अपनी ज्वाला चेताने को
आ कोई धुन गाएँ ।।

कोयल ख़ामोश रहेगी क्या संगीनों के डर से
जंगल में मोर थिरक उठ्ठेंगे बाँध कफ़न सर से
चन्दन में लपट उठाने को
लपटों में कमल खिलाने को
आ कोई धुन गाएँ ।।

आँखों से आँखें चार करो बाँहों को कसने दो
छिलने दो अन्तर के छाले घावों को रिसने दो
यूँ बिगड़ी बात बनाने को
संकेतों में समझाने को आ कोई धुन जाएँ ।
ख़ामोश लबों की लाचारी गीतों में बुन जाएँ ।।