भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

इलाहाबाद के हवाले से / राहुल द्विवेदी

Kavita Kosh से
Firstbot (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 18:07, 28 फ़रवरी 2023 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=राहुल द्विवेदी |अनुवादक= |संग्रह= }...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

कुछ भी नहीं होता
यहाँ
बड़े शहरों कि तरह...
न कोई चकाचौंध
और
न ही सनसनाती हुई खबरें

दिन भर की थकी हुई जिन्दगी
और फिर वही ठहरी हुई शाम...
वही जाने पहचाने चेहरे
एक दूसरे को पहचानने
और भुलाने के
क्रम में
खुद को भूलते लोग...

सिगरेट की एक लम्बी कश...
और उसके उठते धुएं के छल्लों के बीच
ठहाकों की आवाज़
अहसास कराती है
लोगों के ज़िंदा होने का

फिर छा जाती है-
दिल दहला देने वाली ...
चिर-परिचित सी
कब्रिस्तानों की ख़ामोशी...