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इश्क़ कर के देख ली जो बे-बसी देखी न थी / हकीम 'नासिर'

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इश्क़ कर के देख ली जो बे-बसी देखी न थी
इस क़दर उलझन में पहले जिंदगी देखी नी थी

ये तमाशा भी अजब है उनके उठ जाने के बाद
मैं ने दिल में इस से पहले तीरगी देखी न थी

आप क्या आए कि रूख़्सत सब अँधेरे हो गए
इस क़दर घर में कभी भी रौशनी देखी न थी

आप से आँखें मिली थीं फिर न जाने क्या हुआ
लोग कहते हैं कि ऐसी-बे-ख़ुदी देखी न थी

मुझ को रूख़्सत कर रहे हैं वो अजब अंदाज़ से
आँख में आँसू लबों पर ये हँसी देखी न थी

किस क़दर ख़ुश हूँ मैं ‘नासिर’ उन को पा लेने के बाद
ऐसा लगता है कभी ऐसी ख़ुशी देखी न थी