Last modified on 28 अगस्त 2020, at 12:14

इश्क़ का काम तो फ़िलहाल नहीं हो सकता / विक्रम शर्मा

 
इश्क़ का काम तो फ़िलहाल नहीं हो सकता
दिल कि कर बैठा है हड़ताल, नहीं हो सकता

तेरे होंठों की जगह फूल नहीं ले सकते
और बदल शाने का रूमाल नहीं हो सकता

दिल की ख़ुद कूचा-ए-जानाँ में बिछा जाता है
इसको लगता है ये पामाल नहीं हो सकता

तुम हवाओं को परखकर ही उड़ाना बोसा
क्यूँकि हर सू तो मेरा गाल नहीं हो सकता

इश्क़ के तर्क का अफ़सोस नहीं है मुझको
क्या कोई हिज्र में ख़ुश-हाल नहीं हो सकता?