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इश्क़ नहीं मेरा धन तक / सादिक़ रिज़वी

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इश्क़ नहीं मेरा धन तक
उन पे वारी तन मन तक

जो दहलीज़ न लांघ सके
आएगा क्या आँगन तक

खैर मनाएं इज़्ज़त की
हाथ है पहुंचा कंगन तक

ब्याह दी बेटी दे के दहेज़
क़र्ज़ में डूबी गर्दन तक

आती है जब उनकी याद
रुक जाती है धड़कन तक

हम पे करे वह हद जारी
पाक है जिसका दामन तक

जान दी लेकिन आन न दी
रुसवा हो गया रहजन तक

देख के हैबत चेहरे पर
हंसने लगा है दरपन तक

'सादिक़' तन्हाई का ज़ह्र
फ़ैल गया है तन मन तक