भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

इश्क-ए-हक़ीक़ी / रेशमा हिंगोरानी

Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 09:52, 30 जनवरी 2012 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रेशमा हिंगोरानी |संग्रह= }} {{KKCatNazm}} <poem> ...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

देर तक...
दूर तक...
रहती है महक...
जब तू चला जाता है,
कहाँ घटता है असर,
जब तू चला जाता है…

वो बेमिसाल सा लफ़्ज़ों का जाल,
खिजाँ को जो बना दे
जाँफिज़ा!

तमाम वो कलाम,
तेरे फुर्क़त के काम...
जो भेजे मेरे नाम,
वो सारे ही पयाम,

बने रहते हैं बदस्तूर,
सब अपनी ही जगह!

उम्र कटती रहे,
घटती है कब कशिश तेरी?
वक़्त जाता रहे,
बदली है कब रविश तेरी?

कब उतरता है नशा,
जब तू चला जाता है…
कहाँ होती है बसर,
कहाँ घटता है असर,
जब तू चला जाता है…

04.06.93