Last modified on 23 अप्रैल 2023, at 22:26

इसलिए लिखता हूँ कविताएँ / गौरव गुप्ता

1
मैं वहाँ नहीं हूँ जहाँ मुझे ठीक-ठीक होना चाहिए.
यह सोचते-सोचते एक सूची बनाता हूँ।
और पाता हूँ मैं कई जरूरी जगहों पर नहीं हूँ।
जैसे मुझे पिता के पास होना चाहिए वे थके हुए हैं।
मुझे माँ के पास होना चाहिए वे रसोईघर में सदियों से पड़ी हैं।
मुझे प्रेमिका के पास होना चाहिए वह अकेली अनजान शहर में है
मुझे दोस्तों के पास होना चाहिए वे इंतज़ार में है
इस तरह सूची बढ़ती जाती है
और एक छोटे कमरे से लेकर संसार तक फैल जाती है
मैं इन जगहों पर एक वक्त में कभी नहीं हो पाता हूँ
इसलिए लिखता हूँ कविताएँ
और हर जरूरी जगहों पर अपनी उपस्थिति दर्ज कराता हूँ।
 
2
बहुत बोलने की इच्छा के समय बिल्कुल चुप्प रह जाना चाहता हूँ।
बहुत बेचैनी को भाग कर नहीं,
किसी पार्क की बेंच पर बैठकर महसूस करता हूँ।
खुद को भीड़ से साबूत बाहर निकाल लाता हूँ,
और अपने एकांत में चाय की घूँट लगाता हूँ।
बुरे समय में कहता हूँ, गुजर जाएगा।
और सबसे अच्छे समय को बाँध कर नहीं रखना चाहता।
जीवन कितना सुंदर है इस बात को प्रेम करके महसूस करता हूँ।
कुछ खूबसूरत शब्दों को सिंदूरी शाम के वक़्त हथेलियों में ले उछालता हूँ।
लिखता हूँ वह सब कुछ, जिसे कहने का दूसरा खूबसूरत जरिया ढूँढ नहीं पाया।