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इसी जन्नत में, जहन्नुम गुमां होता है / तारा सिंह

इसी जन्नत में, जहन्नुम गुमां होता है
आँखें अपनी, ख्वाब गैरां होता है

दुआ माँगने से , दुआ कबूल नहीं होती
होती उसकी है,जिस पर ख़ुदा मेहरबां होता है

निकलती है अश्क, जब मिजगाँ को छोड़कर
खाक में मिले, पहले लब से फ़ुगाँ होता है

माना कि इश्क करना आसान नहीं,मगर
तुम्हीं कहो,दुनिया में कौन काम आसां होता है

जब चलती चिता बन जाती जबानी, तब गम
की अंधेरी रात में, अश्कों का कहकशां होता है