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इसेण्ट्रिक (उत्केन्द्रीक) / रफ़ीक सूरज

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गाँव के मध्य में स्थित तालाब के किनारे वाले बरगद के पेड़
के बारे में उसके दो सौ साल पुराने होने की बातें दर्ज हैं
ऐसा कहते हैं कुछ पुराने जानकार बूढ़े, क़ब्र में पैर लटकाए हुए लोग
रेंदालकर<ref>मराठी कवि एकनाथ पांडुरंग रेंदालकर (1887-1920)</ref> को गुज़रे हुए ही अब 80-90 से ज़्यादा साल हो गए हैं
उन्हें भी सूझी होंगी कई कविताएँ
बरगद की इन जटाओं को पकड़ कर झूलते हुए!

गाँव में बस स्टैंड नहीं था तब से यह पेड़ खड़ा ही है
आने जाने वाले यात्रियों के लिए छाया ओढ़कर
सात-आठ लोग तो अब भी दिखाई दे रहे थे
नीचे चबूतरे पर लेटे हुए
पेड़ के नीचे से गुज़रने वाले रास्ते को अब दिक़्क़त होने लगी है
जो अब छोटा पड़ने लगा है...

शुरू में टहनियों का फैलाव छाँट कर कम किया गया
और फिर ज़मीन तक पहुँचने वाली लम्बी-लम्बी जटाओं के गुच्छे
इर्द-गिर्द गहरे कुएँ की तरह गड्ढा खोदकर
तोड़ डाली गईं कुल्हाड़ी से रास्ते की दिशा में जा चुकी जडें
आधे से अधिक तना चीर-फाड़ करके रास्ता अच्छा-ख़ासा चौड़ा हो गया है
पेड़ फिर से रास्ते में न घुस जाएँ
इसलिए बड़े ध्यान से खड़ी की गई है
कॉन्क्रीट की आदमक़द दीवार कि जिस से
न मिले पेड़ को बढ़ने के लिए पर्याप्त मिटटी, हवा या पानी
या सोख न ले एकदम बगल वाला गटर या
उखाड़ न डाले गटर के बगल का रास्ता गुस्से में!

पेड़ की शोभा बढाने वाला, इर्द-गिर्द का विस्तृत चबूतरा
एक तरफ से तोड़कर सिर्फ़ आधा रखा गया है
चबूतरे पर जाने के लिए बनी सीढ़ियाँ
यातायात में होने वाली परेशानी के कारण उखाड़ डाली गई हैं
अब हो गई है पक्की व्यवस्था
कोई पहुँच न पाए पेड़ तक आसानी से!

अब पेड़ कैसे एकदम बदल गया है
अब पेड़ कैसा अनबैलेंस्ड
चबूतरे की एक ओर सरका हुआ
अब पेड़ कैसा केन्द्र खो चुका हुआ इसेण्ट्रिक<ref>Eccentric- उत्केन्द्रीक (गणित)</ref>
मैं आते-जाते रोज़ देखता हूँ
वह अनबैलेंस्ड पेड़
और भर-भर आती हैं मन में चिन्ताएँ इस बात की
कि महिलाएँ पेड़ की प्रदक्षिणा कैसे करेंगी!
 
मराठी से हिन्दी में अनुवाद : भारतभूषण तिवारी

शब्दार्थ
<references/>