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इस्लामाबाद / असद ज़ैदी

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मौसम ख़ुशनुमा था धूप में
तेज़ी न थी हवा धीरे धीरे
चलती थी, पैदल चलता आदमी
चलता चला जा सकता था कई मील
बड़े मज़े से

यह भी एक ख़ुशफ़हमी थी हालाँकि

मेरे साथ चलते शुक्ल जी से जब रहा न गया
तो बोले :

मेरे विचार से तो अब हमें इस्लामाबाद पर
परमाणु बम गिरा ही देना चाहिए।