Last modified on 4 फ़रवरी 2010, at 01:44

इस क्षण / ओम प्रभाकर

इस क्षण यहाँ शान्त है जल।

पेड़ गड़े हैं,
घास जड़ी।
हवा सामने के खँडहर में
मरी पड़ी।

नहीं कहीं कोई हलचल।

याद तुम्हारी,
अपना बोध।
कहीं अतल में जा डूबे हैं
सारे शोध।

जमकर पत्थर है हर पल।