भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
इस तरह कर गया दिल को मेरे वीराँ कोई / चराग़ हसन हसरत
Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ३ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 15:18, 5 नवम्बर 2013 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=चराग़ हसन हसरत }} {{KKCatGhazal}} <poem> इस तरह क...' के साथ नया पन्ना बनाया)
इस तरह कर गया दिल को मेरे वीराँ कोई
न तमन्ना कोई बाक़ी है न अरमाँ कोई
हर कली में है तेरे हुस्न-ए-दिल-आरा की नुमूद
अब के दामन ही बचेगा न गिरेबाँ कोई
मय-चकाँ लब नज़र आवारा निगाहें गुस्ताख़
यूँ मेरे पहलू से उट्ठा है ग़ज़ल-ख़्वाँ कोई
ज़ुल्फ़ बरहम है दिल आशुफ़्ता सबा आवारा
ख़्वाब-ए-हस्ती सा नहीं ख़्वाब परेशाँ कोई
नग़मा-ए-दर्द से हो जाता है आलम मामूर
इस तरह छेड़ता है तार-ए-रग-ए-जाँ कोई