Last modified on 7 मई 2020, at 21:48

इस तरह कारवाँ चल रहा प्रेम का / रुचि चतुर्वेदी

इस तरह कारवाँ चल रहा प्रेम का,
है उजाले ने हमको दिया साथ भी।
देह ने इस हृदय को सहारा दिया,
मन के महुए ने बढकर दिया हाथ भी।

जब नहीं थे ये अहसास मरु भूमि थी,
कोई चितवन की आहट सुनाई न दी।
आज कम्पन सुने धमनियो ने सभी,
किन्तु ज्योति नयन को दिखाई न दी।
साथ दीपक जला रात भर रात के,
साथ में जल उठी रात के रात भी॥
इस तरह...॥

आओ संगम करे प्रेम का प्रेम से,
देह गंगा को सिन्धु मिलेगा सजन।
आज होने दो वर्षा अमर प्रेम की,
आज मिट जायेगी इस धरा कि तपन।
बात तुम से अधर कह न पाये कभी,
आज अधरों पर आयेगी वह बात भी॥
इस तरह प्रेम का...॥