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इस पतली सड़क पर बच्चों के साथ / सुशील राकेश

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बहुत दिन गुज़ारे / या कहें कि अब
उन बच्चों के बच्चे बड़े होकर
गटागट मसाला खाते / थूकते
और मामूली-मामूली बातों में
अपशब्दों का जलाते अलाव ।

गली के बड़े-बूढ़े भी तापते हैं
मुझे नहीं मालूम की अगली पीढी
इतनी संवादहीन-विहिन मुद्रा के बीच
क्यों जीने लगी है ?
                          
बिजली विभाग के हुक्मरानों का
अँग्रेज़ियत फ़रमान
सब गली के बच्चों को चुभा
औरतों का घंटाघर हिलने लगा
छुटवा / छुट्टू / मंगला / राम औतरवा
सब इस फेरी की मुनादी पर हँसे
और बिजली वालों को गालियाँ देते
परिंदे की तरह उडे--
साले ! पंद्रह दिन से ट्राँसफरमवा खराब
होई गवा / अँधेरे में सड़ रहे / पानी को तरसे
आदि-आदि सहज भाव / गंदे शब्दों के
पुल पर सरकने लगा बतकहा पन ।

सब गली के सिनेमा वाले मोड़ की
लकड़ी वाली लंगड़े की दुकान पर
जुलूस की शक्ल में सिमट कर
आक्रोश व्यक्त करते हुए
लग रहा था कि सब चील-सा
मंडराते हुए बिजली विभाग को
अभी चट करेंगे ।