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"इस बेरुख़ी से प्यार कभी छिप नहीं सकता / गुलाब खंडेलवाल" के अवतरणों में अंतर
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मंज़िल का एतबार कभी छिप नहीं सकता | मंज़िल का एतबार कभी छिप नहीं सकता | ||
01:50, 12 अगस्त 2011 के समय का अवतरण
इस बेरुख़ी से प्यार कभी छिप नहीं सकता
तू भी है बेक़रार, कभी छिप नहीं सकता
तू कुछ न कह, निगाहें कहे देती हैं सभी
रातों का यह ख़ुमार कभी छिप नहीं सकता
मंज़िल भले ही गर्द से पांवों के छिप गयी
मंज़िल का एतबार कभी छिप नहीं सकता
मजबूरियाँ हज़ार हों मिलने में प्यार को
हों जब निगाहें चार, कभी छिप नहीं सकता
पत्तों ने ढँक लिया हो तेरा बाँकपन गुलाब
आयेगी जब बहार, कभी छिप नहीं सकता