भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

इस समय के हत्यारे / परितोष कुमार 'पीयूष'

Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 14:50, 24 नवम्बर 2017 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

हत्यारे अब बुद्धिजीवी होते हैं
हत्यारे अब शिक्षित होते हैं
हत्यारे अब रक्षक होते हैं
हत्यारे अब राजनेता होते हैं
हत्यारे अब धर्म गुरु होते हैं
हत्यारे अब समाज सेवक होते हैं

हत्यारे अब आधुनिक हो गये हैं
हत्यारों ने बदल लिया है हत्या को अंजाम देने के
अपने तमाम पौराणिक तरीकों को, औजारों को
अब धमकियाँ, चिट्ठियाँ, पर्चियाँ, फोन नहीं आते
पहले होती है हत्या बाद में औपचारिकताएँ

इस दुरूह समय में
हत्या यहाँ बेहद मामूली सी बात है
हत्या के पीछे कोई खास वजह नहीं होती
बात-बात पर हो जाती है हत्या
हत्या अब यहाँ चोरी छिपे नहीं होती
सिर्फ रात के अँधेरे
व सूनसानी जगहों पर ही नहीं होती
हत्या यहाँ दिन दहाड़े खुले आम
घरों, संस्थानों, महाविद्यालयों में घुसकर
अस्पतालों में हवा रोककर
रेलगाडियों से खींचकर
सड़कों चौराहों पर घसीटकर
बलात्कार के बाद योनियाँ छत विछत कर
भीड़ में अफवाह फूँककर होती है

अपने खिलाफ उठती
हर आवाज को दबाना अच्छी तरह जानते हैं
वे बड़े ही चालाक हैं
बड़ी साफगोई से हत्या को अंजाम देते हैं
हत्या को आत्महत्या में बदलने का
हुनर भी बखूबी जानते हैं वो
बड़ी आसानी से बेकसूरों, मासूमों के नाम
देशद्रोही, आतंकवादी होने की
झूठी घोषणाएँ करते हैं
और इस प्रकार वे तमाम हत्यारे
हर बार हो जाते हैं पाक साफ