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इस साज पर गाया नहीं जाता / संजीव ठाकुर

गाजियाबाद
दिल्ली के पास होकर भी
दिल्ली का नहीं।

मैंने अपनी फटी गंजी से
जूता पोंछने का काम शुरू कर दिया है
और मैं आजकल बहुत कम सोने लगा हूं
बहुत दिनों बाद
मैंने मालकोस बजाया
एक अंग्रेजी साज पर।

यूनिवर्सिटी में एक मित्र से झगड़ा हो गया
मैंने कहा था-कुछ कवितायें काफी खराब होती हैं
उसका कहना था-सभी कवितायें अच्छी होती हैं
दरअसल वह कविताओं पर रिसर्च कर रहा है।

प्रूफ की गलतियां देखते-देखते मेरी आंखे दुखने लगी
सड़क के किनारे खड़े होकर
छोले-कुलचे खाने की
आदत हो गई अब तो

चित्रकार न होने के कारण
मैं पंजों के चित्र नहीं बना सकता
और न ही तुम्हारे पैरों के!

‘त्ंड मुंड खप्पर कर धरनी, कर धरनी, कर...
अ-सुर संहारिणी माऽऽऽ... ता, माता-कालिका-
...भवानीऽऽऽ...’
बिना गाये अधूरा ही रहता है
पंडित जसराज का कार्यक्रम
कुतरने लगा है एक चूहा
आकर रोज मेरी किताब
फेंकता हूं झाड़कर अक्षरों की चिंदियां
सा रे म रे म प ध प ध ग रें सां रे नी ध प
रे नी ध नी ध प म प- ध म प- ग रे सा-
(कान्हा मोहे आसावरी राग सुनाओ
ग नी को अवरोहन में सारी)

मुझे अपने गांव की नदी
‘कलबलिया’
याद आती है
नल में नहीं नहा पाऊंगा मैं!

अलबत्ता
सूर्य के विवाह में बारात जाऊंगा
और सूर्य की साली से ब्याह रचाऊंगा
सूर्य की शादी होने तो दो!!

कमरे में प्याज छीला जा रहा था
मेरी आंखों से पानी बह चला
वैसे मैं तुम्हारी याद में रो रहा था!

‘चकइ केचक धुम मकई के लावा
आइथिन बाबा खइथिन लावा’
बाबा!
तुम मरना नहीं
मैं मकई का बीज रोपने वाला हूं
थोड़ी देर में।

जिस बस्ती में हम रहते हैं
मिलकर थोड़ा हंस लेते हैं
क्यों लोग समझ यह लेते हैं
उस पर हम मिटते-मरते हैं
अगर तुमने बताया होता
इस साज पर गाया नहीं जाता
मैं हरगिज नहीं गाता।

किरोसिन तेल से भरा स्टोव
माचिस जलाने पर
गाने लगेगा दीपक राग
खिचड़ी जल भी सकती है
चलो बाजार
‘ब्रेड’ खरीद लाते हैं।

‘इस मक्र की बस्ती में है, मस्ती ही से हस्ती...’
(गायक-गुलाम गली)
हरवक्त छत ताकते रहना
अच्छा लगता है मुझे।
‘आंख की किरकिरी’
‘नाक का बाल’
ये सब मुहावरे हैं
और ‘सावन बीता जाय
अजहूं न आये बालमा...सावन बीता जाय’
केवल गाना।
मैं किसी के साथ कैसे चल सकता हूं?
मेरे पांव में कांटे चुभे हुए हैं।

नक नक ना ना ना किन
ध गे ना ति नक धिन
खालिस दूध की चाय
उसमें तुलसी पत्ता
बकवास!

कल हमने तैयार की है सारणी
करणीय और अकरणीय की
अब मजा आयेगा
‘इट विल बी ए मैच्योर लव’
लेकिन
उस गजल की बात मत छेड़ो
सुनो, मुझे दीवारों पर चिपके पोस्टर उखाड़ना
अच्छा नहीं लगता।

मैं कहां भटक रहा हूं?
क्यों भटकरहा हूं?
क्या बिना ‘मालकोस’ के
नहीं रहा जा सकता?