Last modified on 28 जुलाई 2013, at 08:39

इस से पहले नज़र नहीं आया / 'रसा' चुग़ताई

इस से पहले नज़र नहीं आया
इस तरह चाँद का ये हाला मुझे

आदमी किस कमाल का होगा
जिस ने तस्वीर से निकाला मुझे

मैं तुझे आँख भर के देख सकूँ
इतना क़ाफी है बस उजाला मुझे

उस ने मंज़र बदल दिया यक-सर
चाहिए था ज़रा सँभाला मुझे

और कुछ यूँ हुआ कि बच्चों ने
छीना झपटी में तोड़ डाला मुझे

याद हैं आज भी ‘रसा’ वो हाथ
और रोटी का वो निवाला मुझे