भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

इस स्त्री से डरो / कात्यायनी

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 03:18, 15 अक्टूबर 2009 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=कात्यायनी |संग्रह= }} {{KKCatKavita‎}} <Poem> यह स्त्री सब कुछ ज…)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

यह स्त्री
सब कुछ जानती है
पिंजरे के बारे में
जाल के बारे में
यंत्रणागृहों के बारे में।

उससे पूछो
पिंजरे के बारे में पूछो
वह बताती है
नीले अनन्त विस्तार में
उड़ने के
रोमांच के बारे में।

जाल के बारे में पूछने पर
गहरे समुद्र में
खो जाने के
सपने के बारे में
बातें करने लगती है।

यंत्रणागृहों की बात छिड़ते ही
गाने लगती है
प्यार के बारे में एक गीत।

रहस्यमय हैं इस स्त्री की उलटबासियाँ
इन्हें समझो,
इस स्त्री से डरो।