भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

इस हादसे को देख के / 'अज़हर' इनायती

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

इस हादसे को देख के आँखों में दर्द है
अपनी जबीं पे अपने ही क़दमों की गर्द है.

आ थोड़ी देर बैठ के बातें करें यहाँ
तेरे तो यार लहजे में अपना सा दर्द है.

क्या हो गईं न जाने तेरी गर्म-जोशियाँ
मौसम से आज हाथ सिवा तेरा सर्द है.

तारीख़ भी हूँ उतने बरस की मोअर्रिख़ो
चेहरे पे मेरे जितने बरस की ये गर्द है.

ऐ रात तेरे चाँद सितारों में वो कहाँ
बुझते हुए चराग़ की लौ में जो दर्द है.

'अज़हर' जो क़त्ल हो गया वो भाई था मगर
क़ातिल भी मेरे अपने क़बीले का फ़र्द है.