भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

ईश्वर का दास / शिवशंकर मिश्र

Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 19:06, 21 जून 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=शिवशंकर मिश्र |अनुवादक= |संग्रह= }} {...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

आदमी ने
पत्थ रों को काटकर चेहरे गढ़े
पत्थ रों को समर्पित हुआ
लड़ाइयाँ लड़ीं और
समर्पण के बाद की प्रेरणाएँ लीं
और आदमी दुखी रहा हमेशा
ईश्वदर को अपने में लेकर भी
अपने को ईश्ववर को देकर भी
वह निष्कईरूण समाधान
आदमी पर फला नहीं आज तक।


आदमी यह और है जो
जंगली जितना है, उतना ही
ईश्वीर का दास है!