http://kavitakosh.org/kk/index.php?title=%E0%A4%88%E0%A4%B6%E0%A5%8D%E0%A4%B5%E0%A4%B0_%E0%A4%95%E0%A5%87_%E0%A4%AA%E0%A5%80%E0%A4%9B%E0%A5%87_/_%E0%A4%A6%E0%A4%BF%E0%A4%A8%E0%A5%87%E0%A4%B6_%E0%A4%95%E0%A5%81%E0%A4%B6%E0%A4%B5%E0%A4%BE%E0%A4%B9&feed=atom&action=historyईश्वर के पीछे / दिनेश कुशवाह - अवतरण इतिहास2024-03-28T16:50:16Zविकि पर उपलब्ध इस पृष्ठ का अवतरण इतिहासMediaWiki 1.24.1http://kavitakosh.org/kk/index.php?title=%E0%A4%88%E0%A4%B6%E0%A5%8D%E0%A4%B5%E0%A4%B0_%E0%A4%95%E0%A5%87_%E0%A4%AA%E0%A5%80%E0%A4%9B%E0%A5%87_/_%E0%A4%A6%E0%A4%BF%E0%A4%A8%E0%A5%87%E0%A4%B6_%E0%A4%95%E0%A5%81%E0%A4%B6%E0%A4%B5%E0%A4%BE%E0%A4%B9&diff=263484&oldid=prevअनिल जनविजय: '{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=दिनेश कुशवाह |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KK...' के साथ नया पृष्ठ बनाया2019-06-13T13:15:07Z<p>'{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=दिनेश कुशवाह |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KK...' के साथ नया पृष्ठ बनाया</p>
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|रचनाकार=दिनेश कुशवाह<br />
|अनुवादक=<br />
|संग्रह=<br />
}}<br />
{{KKCatKavita}}<br />
<poem><br />
'''स्टीफ़न हाकिंग के लिए'''<br />
<br />
ईश्वर के अदृश्य होने के अनेक लाभ हैं<br />
इसका सबसे अधिक फ़ायदा<br />
वे लोग उठाते हैं<br />
जो लोग हर घड़ी यह प्रचारित करते रहते हैं<br />
कि ईश्वर हर जगह और हर वस्तु में है ।<br />
<br />
इससे सबसे अधिक ठगे जाते हैं वे लोग<br />
जो इस बात में विश्वास करते हैं कि<br />
भगवान हर जगह है और<br />
सब कुछ देख रहा है ।<br />
<br />
बुद्ध के इतने दिनों बाद<br />
अब यह बहस बेमानी है कि<br />
ईश्वर है या नहीं है<br />
अगर है भी तो उसके होने से<br />
दुनिया की बदहाली पर<br />
तब से आज तक<br />
कोई फ़र्क नहीं पड़ा ।<br />
<br />
यों उसके हाथ बहुत लम्बे हैं<br />
वह बिना पैर हमारे बीच चला आता है<br />
उसकी लाठी में आवाज़ नहीं होती<br />
अन्धे की लकड़ी के नाम पर<br />
वह बन्दों के हाथ में लाठी थमा जाता है<br />
और ईश्वर के नाम पर<br />
धर्मयुद्ध की दुहाई देते हैं<br />
बुश से लेकर लादेन तक । <br />
<br />
ईश्वर की सबसे बड़ी खामी यह है कि<br />
वह समर्थ लोगों का कुछ नहीं बिगाड़ पाता<br />
समान रूप से सर्वव्यापक सर्वशक्तिमान<br />
प्रभु प्रेम से प्रकट होता है पर<br />
घिनौने बलात्कारियों के आड़े नहीं आता<br />
अपनी झूठी क़समें खाने वालों को वह<br />
लूला-लँगड़ा-अन्धा नहीं बनाता<br />
आदिकाल से अपने नाम पर<br />
ऊँच-नीच बनाकर रखने वालों को<br />
सन्मति नहीं देता<br />
उसके आस-पास<br />
नेताओं की तरह धूर्त<br />
छली और पाखण्डी लोगों की भीड़ जमा है ।<br />
<br />
यह अपार समुद्र<br />
जिसकी कृपा का बिन्दु मात्र है<br />
उस दयासागर की असीम कृपा से<br />
मज़े में हैं सारे अत्याचारी<br />
दीनानाथ की दुनिया में<br />
कीड़े-मकोड़ों की तरह<br />
जी रहे हैं ग़रीब ।<br />
<br />
ईश्वर के अदृश्य होने के अनेक लाभ हैं<br />
जैसे कोई उसपर जूता नहीं फेंकता<br />
भृगु की तरह लात मारने का सवाल ही नहीं<br />
उस पर कोई झुँझलाता तक नहीं<br />
बल्कि लोग मुग्ध होते हैं कि<br />
क्षीरसागर में लेटे-लेटे कैसी अपरम्पार<br />
लीलाएँ करता है जगत का तारनहार<br />
दँगा-बाढ़ या सूखा के राहत शिविरों में गए बिना<br />
मन्द-मन्द मुस्कराता हुआ<br />
हजरतबल और अयोध्या में<br />
देखता रहता है अपनी लीला ।<br />
<br />
उसकी मर्ज़ी के बिना पत्ता तक नहीं हिलता<br />
सारे शुभ-अशुभ भले-बुरे कार्य<br />
भगवान की मर्ज़ी से होते हैं<br />
पर कोई प्रश्न नहीं उठाता कि<br />
यह कौन-सी खिचड़ी पकाते हो, दयानिधान?<br />
चित्त भी मेरी और पट्ट भी मेरी<br />
तुम्हारे न्याय में देर नहीं, अन्धेर ही अन्धेर है, कृपासिन्धु !<br />
<br />
ईश्वर के पीछे मज़ा मार रही है<br />
झूठों की एक लम्बी जमात<br />
एक सनातन व्यवसाय है<br />
ईश्वर का कारोबार ।<br />
<br />
महाविलास और भूखमरी के कगार पर<br />
एक ही साथ खड़ी दुनिया में<br />
आज भले न हो कोई नीत्से<br />
यह कहने का समय आ गया है कि<br />
आदमी अपना ख़याल ख़ुद रखे ।<br />
</poem></div>अनिल जनविजय