♦ रचनाकार: ईसुरी
जब से रजऊ ने पैरी अंगिया, मोय करो बैरगिया
फिरतीं रातीं गली-खोरन में, तनक उगर गई जंगिया
घूमत फिरत नसा के मारे, मानो पी लई भंगिया
ईसुर भये बाग के भौंरा, रजऊ भईं फुलबगिया ।
जब से रजऊ ने पैरी अंगिया, मोय करो बैरगिया
फिरतीं रातीं गली-खोरन में, तनक उगर गई जंगिया
घूमत फिरत नसा के मारे, मानो पी लई भंगिया
ईसुर भये बाग के भौंरा, रजऊ भईं फुलबगिया ।