भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

ई कामवा के करी / कुमार वीरेन्द्र

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

मेरी आजी
आज तक भोट देने नहीं गई, उसे
कोई रुचि नहीं चुनाव में, नेता और सरकार में, कहने पर भी
कि 'एगो भोटवा कतना काम के...', तब भी नहीं गई, कबहुँ
नहीं गई आजी, हालाँकि उसके बेटे, बहुएँ, पोते
पतोहू जाते रहे हैं, जिसे वह
शुरू से ही

निठल्लों का काम समझती रही है

जब समझदार हुआ
तब यही लगा, आजी पुराने ज़माने की है,
पढ़ी-लिखी भी नहीं, उसे का मालूम, का चुनाव का भोट, वैसे है तनिक ज़िद्दी भी,
बताना चाहो तो सुनती नहीं, पर जब समझदार नहीं, था छोटा बच्चा
पूछा था, 'आजी, तू भोट देने काहे नाहीं जाती ?',
तब आजी ने
जो बात कही थी, क्या ख़ूब कही थी, और
इतनी जल्दी, और इतनी

आसानी से कह दी थी, लगा था

जैसे उसके लिए
ई भी भला कोई सवाल है, आजी ने
कहा था, 'अगर मैं भोट देने जाऊँ, तो, ई जो गोबर उठाना है
ई जो गोइँठा लाना है, ई जो झाड़ू लगानी है, ई जो जाँता से
सतुआ पीसना है, ई जो लेदरा सीना है, ई जो
बुलाहटा पुराना हैै, ई सब कामवा
के करी, ई सब

तोहार इनरा गाँधी...?'