भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

ई दुनियाँ छै असार, हे सखिया मोरी / छोटेलाल दास

Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 21:33, 21 अक्टूबर 2016 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=छोटेलाल दास |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCat...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

ई दुनियाँ छै असार, हे सखिया मोरी।
मानो गुरु के विचार, हे सखिया मोरी॥टेक॥
एक दिन जमुवाँ ऐथौं, हाथ-गोड़ बान्हीं देथौं।
देथौं मुंगरी के मार, हे सखिया मोरी॥1॥
माय-बाप चिल्लैभे बहिना, मानथौं नैं एक्को कहना।
कोय नैं होयथौं राखनहार, हे सखिया मोरी॥2॥
गुरु के शरण भागो, गुरु के चरण लागो।
गुरु सें डरै छै जमराज, हे सखिया मोरी॥3॥
पाँच पाप छोड़ि देहो, सदाचार गहि लेहो।
नित दिन करो सतसंग, हे सखिया मोरी॥4॥
गुरु के भजन करो, पर उपकार करो।
‘लाल दास’ तजि दे गुमान, हे सखिया मोरी॥5॥