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उगूँ उर में / रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’

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15
बो दूँ फ़सल
मुस्कानों की दिल में
उगूँ उर में।
16
खोलो नयन
बन मधुर स्वप्न
तिरता रहूँ।
17
मैं वो हवा हूँ
जो तेरे दर्द संग
उड़ा ले गई।
18
तुमने छुआ
जैसे किसी ने दी हो
दिल से दुआ।
19
छलके सिंधु
हिलता रहा हाथ
कुछ चू गया।