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उजाला जग मने झमकिया जो बाँदे बाल भोली जौं / क़ुली 'क़ुतुब' शाह

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उजाला जग मने झमकिया जो बाँदे बाल भोली जौं
हुआ फिर रेन अँधारा बंदे सो केस खोली जौं

लटकती जब चली सो धन सके हैं चालं हंस की काँ
बने बिन फूल सब भरे जो हँस कर बात बोली जौं

करो अब आशिकाँ दिल घट बचन माशूक़ का एक नईं
वफा के अच्छराँ जो थे सो अपने दिल थे धूली जौं

मुहम्मद का मोहब्बत आ किया है ठार मुंज दिल में
अली घर भीक मँगने थे भरी मुंज दिल की झोली जौं