http://kavitakosh.org/kk/index.php?title=%E0%A4%89%E0%A4%9C%E0%A4%BE%E0%A4%B2%E0%A5%87_%E0%A4%AE%E0%A5%87%E0%A4%82_%E0%A4%86%E0%A4%9C%E0%A4%BE%E0%A4%A8%E0%A5%81%E0%A4%AC%E0%A4%BE%E0%A4%B9%E0%A5%81_/_%E0%A4%A6%E0%A4%BF%E0%A4%A8%E0%A5%87%E0%A4%B6_%E0%A4%95%E0%A5%81%E0%A4%B6%E0%A4%B5%E0%A4%BE%E0%A4%B9&feed=atom&action=historyउजाले में आजानुबाहु / दिनेश कुशवाह - अवतरण इतिहास2024-03-28T12:52:18Zविकि पर उपलब्ध इस पृष्ठ का अवतरण इतिहासMediaWiki 1.24.1http://kavitakosh.org/kk/index.php?title=%E0%A4%89%E0%A4%9C%E0%A4%BE%E0%A4%B2%E0%A5%87_%E0%A4%AE%E0%A5%87%E0%A4%82_%E0%A4%86%E0%A4%9C%E0%A4%BE%E0%A4%A8%E0%A5%81%E0%A4%AC%E0%A4%BE%E0%A4%B9%E0%A5%81_/_%E0%A4%A6%E0%A4%BF%E0%A4%A8%E0%A5%87%E0%A4%B6_%E0%A4%95%E0%A5%81%E0%A4%B6%E0%A4%B5%E0%A4%BE%E0%A4%B9&diff=173135&oldid=prevSharda suman: '{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार= |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatLambiRachna}} {{KKCatKavita}} <...' के साथ नया पन्ना बनाया2014-04-21T08:34:01Z<p>'{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार= |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatLambiRachna}} {{KKCatKavita}} <...' के साथ नया पन्ना बनाया</p>
<p><b>नया पृष्ठ</b></p><div>{{KKGlobal}}<br />
{{KKRachna<br />
|रचनाकार=<br />
|अनुवादक=<br />
|संग्रह=<br />
}}<br />
{{KKCatLambiRachna}}<br />
{{KKCatKavita}}<br />
<poem><br />
बड़प्पन का ओछापन सँभालते बड़बोले<br />
अपने मुँह से निकली हर बात के लिए<br />
अपने आप को शाबाशी देते हैं<br />
जैसे दुनिया की सारी महानताएँ<br />
उनकी टाँग के नीचे से निकली हों<br />
कुनबे के काया-कल्प में लगे बड़बोले<br />
विश्व कल्याण से छोटी बात नहीं बोलते।<br />
<br />
वे करते हैं<br />
अपनी शर्तों पर<br />
अपनी पसंद के नायक की घोषणा<br />
अपनी विज्ञापित कसौटी के तिलिस्म से<br />
रचते हैं अपनी स्मृतियाँ और<br />
वर्तमान की निन्दा करते हुए पुराण।<br />
<br />
लोग सुनते हैं उन्हें<br />
अचरज और अचम्भे से मुँहबाए<br />
हमेशा अपनी ही पीठ बार-बार ठोकने से<br />
वे आजानुबाहु हो गये।<br />
<br />
उन्होंने ही कहा था तुलसीदास से<br />
ये क्या ऊल-जलूल लिखते रहते हो<br />
रामायण जैसा कुछ लिखो<br />
जिससे लोगों का भला हो।<br />
<br />
गांव की पंचायत में<br />
देश की पंचायत के किस्से सुनाते<br />
देश काल से परे बड़बोले<br />
बहुत दूर की कौड़ी ले आते हैं।<br />
<br />
सरदार पटेल होते तो इस बात पर<br />
हमसे ज़रूर राय लेते<br />
जैसा कि वे हमेशा किया करते थे<br />
अरे छोड़ो यार!<br />
नेहरु को कुछ आता-जाता था<br />
सिवा कोट में गुलाब खोंसने के<br />
तुम तो थे न<br />
जब इंदिरा गांधी ने हमें<br />
पहचानने से इंकार कर दिया<br />
हम बोले-हमारे सामने<br />
तुम फ्राॅक पहनकर घूमती थीं इंदू!<br />
लेकिन मानना पड़ेगा भाई<br />
इसके बाद जब भी मिली इंदिरा<br />
पाँव छूकर ही प्रणाम किया।<br />
‘मैं‘ उनकेे लिए नहीं बना<br />
वे ‘हम‘ हैं<br />
हम होते तो इस बात के लिए<br />
कुर्सी को लात मार देते<br />
जैसे हमने ठाकुर प्रबल प्रताप सिंह को<br />
दो लात लगाकर सिखाया था<br />
रायफल चलाना।<br />
<br />
झाँसी की रानी पहले बहुत डरपोक थीं<br />
हमारी नानी की दादी ने सिखाया था<br />
लक्ष्मीबाई को दोनों हाथों तलवार चलाना।<br />
<br />
एकबार जब बंगाल में<br />
भयानक सूखा पड़ा था<br />
हमारे बाबा गये थे बादल खोदने<br />
अपना सबसे बड़ा बाँस लेकर।<br />
<br />
हर काल-जाति और पेशे में<br />
होते थे बड़बोले पर<br />
लोगों ने कभी नहीं सुना था<br />
इस प्रकार बड़बोलों का कलरव।<br />
<br />
वे कभी लोगों की लाश पर<br />
राजधर्म की बहस करते हैं-<br />
‘शुक्र मनाइए कि हम हैं<br />
नहीं तो अबतक<br />
देश के सारे हिन्दू हो गये होते<br />
उग्रवादी<br />
तो कुछ बड़बोले<br />
नौजवानों को अल्लाह की राह में लगा रहे हैं<br />
<br />
कुछ बड़बोलों के लिए<br />
आदमी हरित शिकार है<br />
कमाण्डो और सशस्त्र पुलिस बल से<br />
घिरे बड़बोले कहते हैं<br />
हम अपनी जान हथेली पर लेकर आये हैं।<br />
<br />
कभी वे अभिनेत्री के<br />
गाल की तरह सड़क बनाते हैं<br />
कभी कहते हैं सड़क के गढ्ढे में<br />
इंजीनियर को गाड़ देंगे।<br />
<br />
जहाँ देश के करोड़ों बच्चे<br />
भूखे पेट सोते हैं<br />
कहते हैं बड़बोले<br />
कोई भी खा सकता है फाइव-स्टार में<br />
मात्र पाँच हजार की छोटी सी रक़म में।<br />
<br />
अपनी सबसे ऊँची आवाज़ में<br />
चिल्लाकर कहते हैं वे<br />
स्वयं बहुत बड़ा भ्रष्ट आदमी है यह<br />
श्री किशन भाई बाबूराव अन्ना हजारे<br />
इरोम चानू शर्मिला से अनभिज्ञ<br />
देश की सबसे बड़ी पंचायत में<br />
कहते हैं बड़बोले<br />
एक बुढ्ढा आदमी कैसे रह सकता है<br />
इतने दिन बिना कुछ खाये-पिये<br />
और वे भले मानुष<br />
ब्रह्मचर्य को अनशन की ताकत बताते हैं।<br />
<br />
यहाँ किसिम-किसिम के बड़बोले हैं<br />
कोई कहता है<br />
इनके एजेण्डे में कहाँ हैं आदिवासी<br />
दलित-पिछड़े और गरीब लोग<br />
ये बीसी-बीसी (भ्रष्टाचार-भ्रष्टाचार) करें<br />
हम इस बहाने ओबीसी को ठिकाने लगा देंगे।<br />
<br />
कोई कहता है<br />
किसी को चिन्ता है टेण्ट में पड़े रामलला की<br />
इस संवेदनशील मुद्दे पर<br />
धूल नहीं डालने देंगे हम<br />
अभी तो केवल झाँकी है<br />
मथुरा काशी बाकी है।<br />
<br />
देवता तो देवता हैं<br />
देवियाँ भी कम नहीं हैं<br />
कहती हैं बस! बहुत हो चुका!!<br />
भ्रष्टाचार विरोधी सारे आंदोलन<br />
देश की प्रगति में बाधा हैं<br />
पीएम की खीझ जायज है<br />
या तो पर्यावरण बचा लो<br />
या निवेश करा लो<br />
छबीली मुस्कान, दबी जबान में<br />
कहती हैं वे<br />
सचमुच बहुत भौंकते हैं<br />
ये पर्यावरण के पिल्लै।<br />
<br />
नहीं जानतीं वे कि उन जैसी हजारों<br />
स्वप्न-सुन्दरियों की कंचन-काया<br />
मिट्टी हो जायेगी तब भी<br />
बची रहेंगी मेधा पाटकर अरुणा राय और<br />
अरुंधती, चिर युवा-चिरंतन सुंदर।<br />
<br />
सचमुच एक ही जाति और जमात के लोग<br />
अलग-अलग समूहों में इस तरह रेंकते<br />
इससे पहले<br />
कभी नहीं सुने गये।<br />
<br />
बड़बोले कभी नहीं बोलते<br />
भूख खतरनाक है<br />
खतरनाक है लोगों में बढ़ रहा गुस्सा<br />
गरीब आदमी तकलीफ़ में है<br />
बड़बोले कभी नहीं बोलते।<br />
वे कहते हैं<br />
फिक्रनाॅट<br />
बत्तीस रुपये रोज़ में<br />
जिन्दगी का मजा ले सकते हो।<br />
<br />
बड़बोले यह नहीं बोलते कि<br />
विदर्भ के किसान कह रहे हैं<br />
ले जाओ हमारे बेटे-बेटियों को<br />
और इनका चाहें जैसा करो इस्तेमाल<br />
हमारे पास न जीने के साधन हैं<br />
न जीने की इच्छा।<br />
<br />
बड़बोले देश बचाने में लगे हैं।<br />
<br />
बड़बोले यह नहीं बोलते कि<br />
अगर इस देश को बचाना है<br />
तो उन बातों को भी बताना होगा<br />
जिनपर कभी बात नहीं की गई<br />
जैसे मुठ्ठी भर आक्रमणकारियों से<br />
कैसे हारता रहा है ये<br />
तैंतीस करोड़ देवी-देवताओं का देश?<br />
तब कहाँ थी गीता?<br />
हर दुर्भाग्य को ‘राम रचि राखा‘ किसने प्रचारित किया!<br />
लोगों में क्यों डाली गयी भाग्य-भरोसे जीने की आदत?<br />
<br />
पहले की तरह सीधे-सरल-भोले<br />
नहीं रहे बड़बोले<br />
अब वे आशीर्वादीलाल की मुद्रा में<br />
एक ही साथ<br />
वालमार्ट और अन्डरवर्ल्ड की<br />
आरती गाते हैं<br />
तुम्हीं गजानन! तुम्ही षड़ानन!<br />
हे चतुरानन! हे पंचानन!<br />
अनन्तआनन! सहस्रबाहो!!<br />
<br />
अब उनके सपने सुनकर<br />
हत्यारों की रुह काँप जाती है<br />
उनकी टेढ़ी नजर से<br />
मिमिआने लगता है<br />
बड़ा से बड़ा माफिया<br />
थिंकटैंक बने सारे कलमघसीट<br />
उनके रहमों-करम पर जिन्दा हैं।<br />
<br />
पृथ्वी उनके लिए बहुत छोटा ग्रह है<br />
आप सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड उनके मुँह में<br />
देख सकते हैं<br />
ऐसे लोगों को देखकर ही बना होगा<br />
समुद्र पी जाने या सूर्य को<br />
लील लनेे का मिथक।<br />
<br />
बड़बोले पृथ्वी पर<br />
मनुष्य की अन्यतम उपलब्धियों के<br />
अन्त की घोषणा कर चुके हैं<br />
और अन्त में बची है पृथ्वी<br />
उनकी जठराग्नि से जल-जंगल-जमीन<br />
खतरे में हैं<br />
खतरे में हैं पशु-पक्षी-पहाड़<br />
नदियाँ-समुद्र-हवा खतरे में हैं<br />
पृथ्वी को गाय की तरह दुहते-दुहते<br />
अब वे धरती का एक-एक रो आं<br />
नोचने पर तुले हैं<br />
हमारे समय के काॅरपोरेटी कंस<br />
कोई संभावना छोड़ना नहीं चाहते<br />
भविष्य की पीढ़ियों के लिए<br />
अतिश्योक्ति के कमाल भरे<br />
बड़बोले इनके साथ हैं।<br />
<br />
बड़बोलों ने रच दिया है<br />
भयादोहन का भयावह संसार<br />
और बैठा दिये हैं हर तरफ<br />
अपने रक्तबीज क्षत्रप।<br />
<br />
तमाम प्रजातियों के बड़बोले<br />
एक होकर लोगों को डरा रहे हैं<br />
इस्तेमाल की चीजों के नाम पर<br />
वैज्ञानिकों की गवाही करा रहे हैं<br />
ब्लेड, निरोध, सिरींज तो छोड़िये<br />
वे लोगों को नमक का<br />
नाम लेकर डरा रहे हैं।<br />
<br />
अब हँसने की चीज नहीं रहा<br />
चमड़े का सिक्का<br />
उन्होंने प्लाटिक को बना दिया<br />
‘मनी‘ और पारसमणि<br />
छुवा भर दीजिए सोना हाजिर।<br />
<br />
बड़बोले ग्लोबल धनकुबेरों का आह्वान<br />
देवाधिदेव की तरह कर रहे हैं<br />
‘कस्मै देवाय हविषा विधेम‘<br />
पधारने की कृपा करें देवता!<br />
अतिथि देवो भव!!<br />
मुख्य अतिथि महादेवो भव!!!<br />
<br />
बड़बोले आचार्य बनकर बोल रहे हैं<br />
जगती वणिक वृत्ति है<br />
पैसा हाथ का मैल<br />
हम संसार को हथेली पर रखे<br />
आँवले की तरह देखते हैं<br />
‘वसुधैव कुटुम्बकम‘ तो<br />
हमारे यहाँ पहले से ही था।<br />
<br />
भूख गरीबी और भ्रष्टाचार के<br />
भूमण्डलीकरण के पुरोहित<br />
बने बड़बोले सोचते हैं<br />
बर मरे या कन्या<br />
हमें तो दक्षिणा से काम।<br />
<br />
बड़बोले भगवा, कासक, जुब्बा<br />
पहनकर बोल रहे हैं<br />
पहनकर बोल रहे हैं<br />
चोंगा-एप्रिन और काला कोट<br />
बड़बोले खद्दर पहनकर<br />
दहाड़ रहे हैं।<br />
<br />
पर आश्चर्य!!<br />
कश्मीर से लेकर कन्या कुमारी तक<br />
कोई असरदार चीख नहीं<br />
सब चुप्प।<br />
जिन्होंने कोशिश की उन्हें<br />
वन, कन्दरा पहाड़ की गुफाओं में<br />
खदेड़ दिया गया।<br />
<br />
बड़बोले ग्रेट मोटीवेटर बनकर<br />
संकारात्मक सोच का व्यापार कर रहे हैं<br />
और कराहने तक को<br />
बता रहे हैं नकारात्मक सोच का परिणाम।<br />
<br />
बड़बोले प्रेम-दिवस का विरोध<br />
और घृणा-दिवस का प्रचार कर रहे हैं<br />
वे भाई बनकर बोल रहे हैं<br />
वे बापू बनकर बोल रहे हैं<br />
वे बाबा बनकर बोल रहे हैं।<br />
<br />
बड़बोले अब पहले की तरह फेंकते नहीं<br />
बाक़ायदा बोलने की तनख्वाह या<br />
एनजीओ का अनुदान लेते हुए<br />
अखबारों में बोलते हैं<br />
बोलते हैं चैनलों पर<br />
एंकरों की आवाज़ में बोलते हैं।<br />
<br />
बाजार के दत्तक पुत्र बने बड़बोले<br />
बड़े व्यवसायियों में लिखा रहे हैं अपना नाम<br />
और येन-केन-प्रकारेण<br />
बड़े व्यवसायियों को कर रहे हैं<br />
अपनी बिरादरी में शामिल।<br />
<br />
शताब्दी के महानायक बने बड़बोले<br />
बिग लगाकर तेल बेच रहे हैं<br />
बेच रहे हैं भारत की धरती का पानी<br />
बड़बोले हवा बेचने की तैयारी में हैं।<br />
<br />
कहाँ जायें? क्या करें?<br />
जल सत्याग्रह! या नमक सत्याग्रह!<br />
गांधीवाद या माओवाद!<br />
एक बूँद गंगा जल पीकर<br />
बोलो जनता की औलाद!!<br />
<br />
बड़बोले अब मदारी की भाषा नहीं<br />
मजमेबाजों की दुराशा पर जिन्दा हैं<br />
कि आज भी असर करता है<br />
लोगों पर उनका जादू<br />
बड़बोले ख़ुश हैं<br />
हम ख़ुश हुआ कि तर्ज पर<br />
कि उन्होंने लोगों को<br />
ताली बजाने वालों की<br />
टोली में बदल दिया।<br />
<br />
बड़बोले अर्थशास्त्र इतिहास<br />
शिक्षा-संस्कृति और सभ्यता पर<br />
बोल रहे हैं, बोल रहे हैं<br />
साहित्य-कला और संगीत पर<br />
सेठों और सरकारी अफसरों के रसोइये<br />
बड़बोले कवियों की कामनाओं और<br />
कामिनियों के कवित्व का<br />
आखेट कर रहे हैं।<br />
<br />
बड़बोले समझते हैं<br />
जिसकी पोथी पर बोलेंगे<br />
वही बड़ा हो जायेगा<br />
सारे लखटकिया और लेढ़ू<br />
पुरस्कारों के निर्णायक वही हैं।<br />
<br />
परन्तु वे किसी के सगे नहीं हैं<br />
वे जिस पौधे को लगाते हैं<br />
कुछ दिनों बाद एकबार<br />
उसे उखाड़कर देख लेते हैं<br />
कहीं जड़ तो नहीं पकड़ रहा।<br />
<br />
अगर आप उनके दोस्त बन गये<br />
तो वे आपको जूता बना लेंगे<br />
पहनकर जायेंगे हर जगह<br />
मंदिर-मस्जिद-शौचालय<br />
और दुश्मन बन गये<br />
तो आप<br />
उनकी नीचता की कल्पना नहीं कर सकते।<br />
<br />
वे चुप रहकर कुछ भी नहीं करते<br />
सिवाय अपनी दुरभिसंधियों के<br />
खाने-पचाने की कला में निपुण बड़बोले<br />
अब अपने बेटे-दामाद-भाई-भतीजों को<br />
बना रहे हैं भोग कुशल-बे-हया।<br />
<br />
शीर्षक से उपरोक्त बने बड़बोलों को<br />
अब किसी बात का मलाल नहीं होता<br />
उन्हें इसकदर निडर और लज्जाहीन<br />
अहलकारों ने बनाया या उस्तादों ने<br />
उन्हें आदत ने मारा या अहंकार ने<br />
कहा नहीं जा सकता<br />
पर उन्होंने वाणी को भ्रष्ट कर दिया<br />
भ्रष्ट कर दिया आचारण को<br />
ग्रस लिया तंत्र को<br />
डँस लिया देश को<br />
सिर्फ बोलते और बोलते हुए<br />
वाणी के बहादुरों ने<br />
लोकतंत्र पर कब्जा कर लिया<br />
और बाँट दिया उसे<br />
जनबल और धनबल के बहादुरों में<br />
और अब तीनों मिलकर<br />
देश पर मरने वालो को<br />
<br />
पदक बाँट रहे हैं।<br />
</poem></div>Sharda suman